Drishti Aggarwal
20/UCMA/308
परिवर्तन एक शाश्वत सत्य है। यह सृष्टि का अटल नियम है । ईश्वर प्रदत्त इस सृष्टि में कुछ भी स्थिर नहीं रहता। मानवीय स्वभाव अच्छे परिवर्तन को तो सहर्ष स्वीकार कर लेता है, परन्तु बुरे परिवर्तन का हमेशा विरोध करता है। परिवर्तन के प्रति अलगाव मनुष्य की रूढ़िवादिता को दर्शाती है। समय के साथ किसी भी वस्तु, विषय और विचार में बदलाव अत्यंत ही आवश्यक है । परिवर्तन और विकास एक सिक्के के दो पहलू है। परिवर्तन के बिना विकास की कल्पना भी नहीं की जा सकती। जीवन में गतिशीलता और निरंतरता को बनाये रखने के लिए हमें परिवर्तन के महत्त्व को स्वीकार करना ही होगा। समय के साथ न चलने वाला व्यक्ति पिछड़ जाता हैं और अपने जीवन का वास्तविक आनंद उठाने में असमर्थ हो जाता है। नीरस और हताश जीवन में यदि नवीनता की किरणों का समावेश हो जाए तो वह जीवन रसमय और सुखमय हो जाता है। ईश्वर द्वारा रचित इस अद्भुत प्रकृति में कुछ भी अपरिवर्तनशील नहीं है।
समझदार मनुष्य वही है जो ऋतु के अनुकूल अपने जीवन मार्ग को बदल लेता है। परिवर्तन संसार का अटूट नियम है, इस तथ्य को सिद्ध करने के लिए हमें अपने वर्तमान समाज और देश के स्वरुप की तुलना अपने प्राचीन देश और समाज से करनी होगी। व्यक्ति, देश, परिवार और समाज को अपनी पूर्व स्थिति से वर्त्तमान स्थिति तक आने के लिए कितने ही संघर्षों और बदलावों का सामना करना पड़ा है। जीवन सदैव एक - सा नहीं रहता है। जीवन में दुखद और सुखद दोनों प्रकार के परिवर्तन आते हैं, जिन्हे समान भाव से स्वीकार कर हम अपनी जीवन रुपी रेल - गाड़ी को पुनः पटरी पर ला सकते हैं। दोनों ही स्थितियों का संतुलन हमें जीवन में निराशा, हताशा और अवसाद से मुक्त कर सकता है। इस ब्रह्माण्ड का कण - कण परिवर्तनशील है।
जो मानव अपने आप को परिस्थितियों के हिसाब से ढाल लेता है, वो सफल हो जाता है। इससे उसके जीवन में नयी ऊर्जा का संचार होने लगता है और वह सशक्त बन जाता है। परिवर्तन के आने से ही जीवन में आयी स्थिरता को गति मिलती है। फिर चाहे यह परिवर्तन शुभ हो या अशुभ, यही जीवन में नए उत्साह और नई ऊर्जा की लहरें लाता है।
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